१. बरषहिं जलद
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
१. बरषहिं जलद
(१) कृति पूर्ण कीजिए:
उत्तर:
१. बरषहिं जलद
(२) निम्न अर्थ को स्पष्ट करने वाली पंक्तियाँ लिखिए :
१. संतों की सहनशीलता ——
उत्तर:
खल के बचन संत सह जैसे।
२. कपूत के कारण कुल की हानि ——-
उत्तर:
जिमि कपूत के उपजे, कुल सदधर्म नसाहिं ।।
(३) तालिका पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(४) जोड़ियाँ मिलाइए :

उत्तर:
‘अ’ समूह | उत्तर |
१. दमकती बिजली | दुष्टों के वचन |
२. नव पल्लव से भरा वृक्ष | ससि संपन्न पृथ्वी |
३. उपकारी की संपत्ति | साधक के मन का विवेक |
४. भूमि की | राम का डरना |
(५) इनके लिए पद्यांश में प्रयुक्त शब्द :
उत्तर:
(६) प्रस्तुत पद्यांश से अपनी पसंद की किन्हीं चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए ।
उत्तर:
बादल आकाश में उमड़-घुमड़कर भयंकर गर्जना कर रहे हैं। श्रीराम जी कह रहे हैं कि ऐसे में सीता जी के बिना उनका मन भयभीत हो रहा है। बिजली आकाश में ऐसे चमक रही है, जैसे दुष्ट व्यक्ति की मित्रता स्थिर नहीं रहती। कभी वह बनी रहती है और कभी टूटने के कगार पर पहुँच जाती है।
बादल धरती के नजदीक आकर बरस रहे हैं। उनका यह व्यवहार ठीक उसी प्रकार लगता है, जैसे विद्वान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं। बादल भी जल के भार से झुक गए हैं और पृथ्वी के नजदीक आकर अपने जल से प्राणियों को तृप्त कर रहे हैं। पहाड़ों पर वर्षा की बूँदों की चोट पड़ रही है, पर पहाड़ चुपचाप शांत भाव से यह आघात उसी प्रकार सहते जा रहे हैं, जैसे संत लोग दुष्टों के कटुवचन सह लेते हैं और उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते।