10. अपराजेय स्वाध्याय इयत्ता नववि | Aprajey swadhyay iyatta Navvi hindi |अपराजेय स्वाध्याय | ९ वी हिंदी स्वाध्याय | अपराजेय स्वाध्याय हिंदी। hindi swadhyay navvi | 9th hindi swadhyay

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(१) सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए ः-

(क) केवल एक शब्द में उत्तर लिखिए ः

१. जिनमें चल – फिरने की क्षमता का अभाव हो – पंगु

२. जिनमें सुनने की क्षमता का अभाव हो –  बधिर

३. जिनमें बोलने की क्षमता का अभाव हो – मूक 

4. स्वस्थ शरीर में किसी भी एक क्षमता का अभाव होना – अपंग

 

(ख) पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्‍ति में निहित भाव लिखिए ः

१. ‘टाँग ही काटनी है ताे काट दो ।’

उत्तर – इस कथन के द्वारा पता चलता है कि अमरनाथ जी परेशानियों से घबराने वाले इन्सान नहीं थे। वे नहीं चाहते थे कि उनके स्वास्थ्य के लिए उनके परिवार के लोग परेशान हों।

२. ‘मैं जानता हूँकि, जीवन का विकास पुरुषार्थमें हैं, आत्महीनता में नहीं ।’

उत्तर –

अमरनाथ जी को एक-एक करके अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। पहले उनकी टॉंग काटनी पड़ी। वे मानते थे कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं। उन्होंने दुखी हुए बिना रंगों और चित्रों में, बागवानी में स्वयं को डुबा दिया। फिर उनकी दाई बाँह काटनी पड़ी। अब चित्र बनाने के स्थान पर उन्होंने शास्त्रीय संगीत का अभ्यास शुरू किया। लेकिन बीमारी के कारण उनकी आवाज भी एक दिन समाप्त हो गई। अमरनाथ जी अब प्रसिद्ध संगीतज्ञों के कैसेट सुनते। बगीचे में बैठकर पक्षियों का कलरव, पत्ते झरने की आवाज, हवा की सरसराहट, कलियों के चटखने की आवाजों का आनंद लेते।

 

(२) ‘हीन’ शब्द का प्रयोग करके कोई तीन अर्थपूर्ण शब्द तैयार करके लिखिए ः

1.जैसे – आत्म+ हिम = आत्महिम

2.धन + हीन = धनहीन

3. जन + हीन = जनहीन

4. महत्व + हीन = महत्वहीन

 

(३) ‘परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे सहर्षस्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है’, स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर : कहा जाता है कि मनुष्य परिस्थितियों के हाथ में एक कठपुतली के समान होता है। यह कहावत एक साधारण मानव के लिए सही हो सकती है। परंतु इस पृथ्वी पर ऐसे भी अनेक मनुष्य हैं, जो किसी भी हालत में परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते। अमरनाथ जी के जीवन में ऐसा ही हुआ। पहले उनकी टाँग काटनी पड़ी। उन्होंने चित्रकला को अपना साथी बनाया। उसी में खुश रहते। उनकी दाई बाँह निर्जीव हो गई, अतः उसे भी काटना पड़ा। अब अमरनाथ जी अपना संगीत का शौक पूरा करने लगे। बीमारी के दौरान उनकी आवाज चली गई। तब भी उन्होंने परिस्थितियों से हार नहीं मानी। वे बाहर बगीचे में बैठकर प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हैं। प्रसिद्ध संगीतज्ञों के कैसेट सुनते हैं। अभी भी पूर्ववत प्रसन्न रहते हैं।

 

 

 

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