2.जंगल स्वाध्याय इयत्ता नववि हिंदी | Jungle swadhyay iyatta Navvi hindi | जंगल स्वाध्याय | ९ वी हिंदी स्वाध्याय | जंगल स्वाध्याय। hindi swadhyay navvi | 9th hindi

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(१) सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए

 

(क) प्रवाह तालिका : कहानी के पात्र तथा उनके स्वभाव की विशेषताए –

   पीयूष – अबोध, पशु – पक्षी प्रेमी
  तविषा – आज्ञाकारी बहु, प्यार करने वाली मां
शैलेश – आज्ञाकारी पुत्र

 

 

(ख) पहचानिए रिश्ते :

 

(१) दादी – तविषा – सास, पुत्रवधु

(२) पीयूष – शैलेश – पुत्र, पिता

(३) तविषा – शैलेश – पत्नी, पति

(4) शैलेश – दादी – पुत्र, मां 

 

 

 

२) पत्र लेखन ः-

गरमी की छुट्‌टियों में महानगरपालिका/नगर परिषद/ग्राम पंचायतों द्‌वारा पक्षियों के लिए बनाए घोंसले तथा चुग्गा-दाना-पानी की व्यवस्था किए जाने के कारण संबंधित विभाग की प्रशंसा करते हुए पत्र लिखिए ।

 

उत्तर

 

सेवा में –

अध्यक्ष,

महानगरपालिका,

नाशिक, महाराष्ट्र

महोदय,

 

विषय : पक्षियों के लिए घोंसले तथा चुग्गा दाना-पानी की व्यवस्था किए जाने पर अभिनंदन हेतु पत्र।

 

आपको यह पत्र में एक विशेष उद्देश्य से लिख रही हूँ। मैं कक्षा नौवीं की छात्रा हूँ। प्रातः भ्रमण मेरा शौक है। गरमी की छुट्टियों में मैं सूर्य उगने से बहुत पहले घूमने के लिए निकल जाती हूँ। इस बार मैंने अनुभव किया कि सड़क के दोनों ओर स्थित वृक्षों पर पक्षियों की चहचहाट बहुत अधिक है। पक्षियों के ये विभिन्न स्वर कानों को मधुर संगीत जैसे लगते थे।

 

जब मैंने ध्यानपूर्वक इसका कारण जानने की कोशिश की, तो देखा कि आपके विभाग द्वारा बहुत से घोंसले वितरित किए गए हैं, ताकि पक्षी उनमें अपना संसार बसा सकें। साथ ही अनेक स्थानों पर मैंने पानी से भरे कुंडे भी देखे। पार्कों में, चौराहों पर पक्षियों के लिए अनाज बिखरा हुआ देखा।

 

वास्तव में आपके विभाग द्वारा पक्षियों के संवर्धन के लिए किए गए ये कार्य सराहनीय हैं, अभिनंदनीय हैं।

 

भवदीया

 

 

३) कहानी लेखन ः-

दिए गए शब्दों की सहायता से कहानी लेखन कीजिए । उसे उचित शीर्षक देकर प्राप्त होने वाली सीख भी लिखिए ः-

अकाल, तालाब, जनसहायता, परिणाम

 

उत्तर –

 

जहाँ चाह, वहाँ राह

 

जेठ की भयंकर गरमी के बाद आषाढ़ के आने के साथ ही गाँव के सभी लोग बारिश की प्रतीक्षा करने लगे। बारिश हो तो खेतों में बुआई की जाए। पर आषाढ़ सूखा ही निकल गया। आषाढ़ ही क्या, श्रावण, भादो एक-एक करके पूरी वर्षा ऋतु बीत गई पर आसमान से एक भी बूँद नहीं गिरी। आसपास के पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ गया। गाँव के कुएँ सूखने लगे। चारे के अभाव में पशु मरने लगे। सभी गाँववाले चिंतित थे परंतु कोई हल नहीं सूझ रहा था।

 

एक दिन स्कूल में भोजन अवकाश के समय नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों में अकाल के बारे में चर्चा होने लगी। कक्षा में आदित्य सबसे उत्साही छात्र था। उसने सुझाव दिया, क्यों न गाँव में एक तालाब बनाया जाए। पहले तो सभी ने उसकी बात को मजाक समझा, लेकिन बाद गंभीरता से विचार करने लगे।

 

शाम को आदित्य अपने साथियों के साथ चौपाल पहुँचा। गाँव के अनेक बड़े-बूढ़े वहाँ उपस्थित थे। उसने सबके सामने तालाब बनाने का प्रस्ताव रखा। सभी आदित्य की बात सुनकर न केवल हैरान रह गए, बल्कि उसका मजाक उड़ाने लगे। आदित्य ने विनम्रतापूर्वक कहा कि हम दस विद्यार्थियों के दल ने निश्चय किया है कि स्कूल से आकर तालाब खोदने का काम किया करेंगे। हमें केवल आपकी अनुमति चाहिए।

 

सरपंच ने पंचों के साथ विचार-विमर्श किया और उन्हें तालाब बनाने की अनुमति दे दी। शुरू में तो आदित्य का दल ही खुदाई में लगा, लेकिन धीरे-धीरे अन्य कक्षाओं के छात्र-छात्रा भी इस काम में जुड़ गए। गाँववालों ने जब बच्चों का उत्साह और उनकी मेहनत के परिणाम को देखा, तो वे भी स्वयं को इस मुहिम में जुड़ने से नहीं रोक सके।

इस जनसहायता का सुखद परिणाम जल्दी ही सामने आया। एक अच्छा, बड़ा तालाब बनकर तैयार हो गया। कोई सोच नहीं सकता था कि जिन्हें बच्चा समझा जाता था, वे इतना बड़ा काम कर जाएँगे। सच ही कहा गया है- ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’। तालाब को देखने पूरा गाँव उमड़ पड़ा। छोटे बच्चे उछलने-कूदने लगे। स्त्रियाँ गीत गाने लगीं। अचानक आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमकने लगी और वर्षा की बूँदों ने लोगों के तन और मन को भिगो दिया। इस बेमौसम बरसात ने सभी को चमत्कृत कर दिया। गाँववालों को ऐसा लगा मानो उनके

 

परिश्रम से प्रभावित होकर इंद्रदेव ने उन्हें पुरस्कार दिया हो।

सीख : संकल्प और उचित परिश्रम से असंभव कार्य को संभव किया जा सकता है।

 

 

 

 

 

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