8 गजल स्वाध्याय | 8 Gazal swadhyay hindi

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* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

(१) गजल की पंक्‍तियों का तात्‍पर्य:

१. नींव के अंदर दिखाे ———–

उत्तर:

हमें प्रशंसा और वाहवाही का लोभ त्यागकर नींव की ईंटों के समान कुछ अच्छा और सुदृढ़ काम करना चाहिए।

२. आईना बनकर दिखो ————

उत्तर:

हमें ऐसी शख्सियत बनना चाहिए कि कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो, हम विचलित न हों। बिना टूटे, बिना बिखरे हर परिस्थिति का डटकर सामना करें। अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।

 

(२) कृति पूर्ण कीजिए :

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मनुष्‍य से अपेक्षाएँ

उत्तर:

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(३) जिनके उत्‍तर निम्‍न शब्‍द हों, ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए :

१. भीड़

उत्तर:

कवि अक्सर किसी शक्ल को कहाँ देखना चाहता है?

२. जुगनू

उत्तर:

वक्त की धुंध में साथ रहने को किसने कहा?

३. तितली

उत्तर:

कवि खिलते फूल के स्थान पर कहाँ दिखने को कहता है?

४. आसमान

उत्तर:

गर्द बनकर कहाँ लिखना चाहिए?

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(४) निम्‍नलिखित पंक्‍तियों से प्राप्त जीवनमूल्‍य लिखिए :

१. आपको महसूस ————- भीतर दिखो ।

उत्तर:

अपनी रचना ‘गजल’ के अंतर्गत रचनाकार {माणिक वर्मा) ने इन पंक्तियों में मानवमात्र के प्रति संवेदना की एवं सहृदयता जैसे मानवमूल्यों की बात कही है । वे कहते है कि जिस प्रकार मोमबत्ती का धागा उसके भीतर जलता है उसी प्रकार हमें भी प्रत्येक मनुष्य की अंतर्मन की पीड़ा समझकर उसे दूर करने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए | अर्थात हमें पीड़ित के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए ।

२. कोई ऐसी शक्‍ल ————- मुझे अक्‍सर दिखो ।

उत्तर:

हे ईश्वर, मैं चाहता हूँ कि मैं जिसे भी देखूँ, मुझे उसी में तुम नजर आओ। अर्थात मानव मात्र ईश्वर का अंश है।

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(5) कृति पूर्ण कीजिए :

गजल में प्रयुक्‍त प्राकृतिक घटक

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उत्तर:

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(६) कवि के अनुसार ऐसे दिखो :

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उत्तर:

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अभिव्यक्ति

प्रस्‍तुत गजल की अपनी पसंदीदा किन्हीं चार पंक्‍तियों का केंद्रीय भाव स्‍पष्‍ट कीजिए ।

उत्तर:

आपसे किसने कहा स्‍वर्णिम शिखर बनकर दिखो,

शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखाे ।

चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्‍मानों पर लिखो,

और अगर बैठो कहीं ताे मील का पत्‍थर दिखाे ।

उत्तर:

किसी भी अट्टालिका के चमचमाते शिखरों को सभी देखते हैं। उनकी शान की प्रशंसा भी करते हैं। लोग समाज में इन शिखरों के समान ही सम्मान पाना चाहते हैं। परंतु वास्तव में देखा जाए तो इन शिखरों से अधिक महत्व है उन ईंटों और पत्थरों का, जिनके कारण ये शिखर बन सके। यदि नींव की ईंटों ने गुमनामी के अंधेरे में रहना स्वीकार न किया होता, तो इन शिखरों का अस्तित्व ही न होता। यदि हम समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो हमें प्रशंसा और वाहवाही का लोभ त्यागकर नींव की ईंटों के समान कुछ अच्छा और सुदृढ़ काम करना चाहिए।

    यदि आप मंजिल की ओर अग्रसर हैं तो अपने अच्छे कर्मों के कारण उसी प्रकार आसमानों तक छा जाइए, जैसे आँधी आने पर पृथ्वी से आकाश तक धूल-ही-धूल दृष्टिगोचर होती है। अर्थात आपके द्वारा किए गए अच्छे कामों का प्रभाव और चर्चा हर तरफ हो। और यदि आप मंजिल की ओर बढ़ते हुए मार्ग में कहीं बैठ जाते हो तो मील के पत्थर के समान बनो। मील का पत्थर जिस प्रकार एक पथिक को अपनी मंजिल की ओर बढ़ते समय सहायता करता है, उसी प्रकार क्रियाशील न होते हुए भी आप दूसरों की मदद करें। 

9. रीढ़ की हड्डी CLICK HERE

 

हिंदी – Maharashtra State Board Class 10 Hindi Lokbharti Digest

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